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वैक्सीन के खेल का खुलासा

कोरोना काल में हुई असंख्य मौतों के बाद भी अकाल मृत्यु का सिलसिला रुक नहीं रहा है। लगभग रोजाना ऐसी खबरों से दो-चार होना पड़ रहा है, जिनमें कहीं कसरत करते हुए, कहीं नाचते हुए, कहीं कुर्सी पर बैठे-बैठे ही अच्छे-भले लगने वालों की मौत हो गई। ऊपरी तौर पर शरीर भले ही स्वस्थ दिखाई दे रहा हो, लेकिन भीतर न जाने एकदम से क्या होता है कि सीधे जान ही चली जाती है। डॉक्टर भी इन अकाल मौतों के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं बता पा रहे हैं। लेकिन एक सामान्य धारणा बन रही है कि कोरोना से बचने के लिए जो वैक्सीन लगाई गई हैं, ये उसका साइड इफ़ेक्ट यानी दुष्प्रभाव हो सकता है। हालांकि इसकी कोई पुष्टि अब तक नहीं हुई है। लेकिन इस बीच कोविड-19 के लिए वैक्सीन बनाने वाली ब्रिटेन की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने माना है कि उनकी बनाई वैक्सीन के खतरनाक साइड इफ़ेक्ट्स हो सकते हैं।

सोमवार 29 अप्रैल को ब्रिटिश हाईकोर्ट में जमा किए गए दस्तावेज में कंपनी ने माना है कि उनकी कोरोना वैक्सीन से थ्रॉम्बोसिस थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम यानी टीटीएस हो सकता है। इस बीमारी से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है, जो मस्तिष्क आघात या दिल के दौरे का कारण बन सकती है। हालांकि कंपनी का कहना है कि कम मामलों में ही ऐसे दुष्प्रभाव देखे गए हैं। इस भयावह खबर का एक ख़तरनाक पहलू यह भी है कि एस्ट्राजेनेका के फॉर्मूले पर ही भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ने कोविशील्ड नाम से वैक्सीन बनाई है। जिसे भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया गया है। कम से कम 175 करोड़ लोगों ने यह वैक्सीन लगवाई है।

भारत सरकार ने ज़ोर-ज़बरदस्ती से कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए लोगों को मजबूर किया, क्योंकि वैक्सीन लगवाने का प्रमाणपत्र दिखाए बिना न सफर करने दिया जा रहा था, न कहीं प्रवेश करने दिया जा रहा था। प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाला प्रमाणपत्र लेकर लोगों को घूमना पड़ रहा था। उनके लिए शायद यह भी प्रचार करवाने का एक अवसर था। हालांकि अब कहा जा सकता है कि इसमें करोड़ों नागरिकों को गिनीपिग की तरह दवा कंपनियों के सामने पेश कर दिया गया। जिन पर कंपनियों ने अपनी वैक्सीन का परीक्षण किया। इसके बाद लोगों की जान अचानक चली जाए, तो भी इसकी ज़िम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है। क्योंकि सरकार को तो वैक्सीन बनवाने की वाहवाही लूटनी थी।

भारत में इस समय जो अकाल मौतें हो रही हैं, उसके पीछे क्या वैक्सीन ज़िम्मेदार है, और ऐसे कितने लोग हैं, जिनकी मौत का कारण कोविड वैक्सीन है, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन ब्रिटेन में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की वजह से हुई मौतों या गंभीर बीमारियों के ख़िलाफ़ लोग अदालत गए और अब कंपनी के खिलाफ हाईकोर्ट में 51 केस चल रहे हैं। इन पीड़ितों ने एस्ट्राजेनेका से करीब 1 हज़ार करोड़ का हर्जाना मांगा है। सबसे पहले पिछले साल जेमी स्कॉट नाम के शख्स ने एस्ट्राजेनेका के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। जिस पर मई 2023 में स्कॉट के आरोपों के जवाब में कंपनी ने दावा किया था कि उनकी वैक्सीन से टीटीएस नहीं हो सकता है। लेकिन इस साल फरवरी में हाईकोर्ट में जमा किए दस्तावेज में कंपनी इस दावे से पलट गई। और अब पता चल रहा है कि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से टीटीएस हो रहा है। हालांकि कंपनी ने उस बात को नकार दिया है कि इस वैक्सीन से कोई घातक बीमारी हो सकती है।

एस्ट्रजेनेका का कहना है कि उन लोगों के प्रति हमारी संवेदनाएं हैं, जिन्होंने अपनों को खोया है या जिन्हें गंभीर बीमारियों का सामना करना पड़ा। मरीजों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। लेकिन इस प्राथमिकता या संवेदनशीलता के प्रदर्शन का अब क्या अर्थ जब लाखों-करोड़ों लोगों की जान पर बन आई है। अगर मरीजों का ख़्याल वाकई कंपनी को होता तो पीड़ितों को हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाना पड़ता।पीड़ितों को न्याय की उम्मीद अब अदालत से ही है। अगर ब्रिटिश कोर्ट कंपनी के खिलाफ फैसला देता है तो एस्ट्राजेनेका पर 255 मिलियन पाउंड यानी करीब 2671 करोड़ रुपये का जुर्माना लग सकता है। कंपनी को यह रकम वैक्सीन से पीड़ित लोगों या उनके परिवार के सदस्यों को मुआवजे के तौर पर देनी होगी। इस मुआवजे से मारे जा चुके लोगों को वापस तो लाया नहीं जा सकेगा, मगर शायद दवा कंपनियों को इस तरह के खिलवाड़ करने के खिलाफ चेतावनी जरूर मिल जाएगी।

कोरोना काल में दुनिया भर में आम जनता लगभग एक जैसी समस्याओं से ही घिर गई। लोगों के लिए स्वास्थ्य का संकट तो खड़ा हुआ ही, इसके साथ ही आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तौर पर कई किस्म की मुसीबतें उन पर टूटीं, हालांकि इस दौर में सत्ता पर बैठे लोगों ने जमकर मनमानी की। लॉकडाउन के नाम पर निरंकुश शासन की छूट मिल गई और इस दौरान सत्ताधीशों और दवा कारोबारियों के बीच नए किस्म की सांठ-गांठ भी हुई। इसकी परतें अब धीरे-धीरे खुल रही हैं। भारत में कोविशील्ड बनाने वाले अदार पूनावाला को इस वैक्सीन के कारण काफ़ी मुनाफा हुआ। उनकी कंपनी ने 52 करोड़ रूपए के इलेक्टोरल बॉंड खरीदे, जिसका चंदा भाजपा को मिला। इसके बाद लंदन में अदार पूनावाला ने 14 सौ करोड़ रूपयों का आलीशान बंगला खरीदा नरेन्द्र मोदी के साथ उनकी तस्वीरें भी काफ़ी चर्चित रहीं।

इसी तरह एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की लॉन्चिंग के वक़्त ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इसे ब्रिटिश साइंस के लिए एक बड़ी जीत बताया था। लेकिन अब ख़बर है कि इस वैक्सीन का इस्तेमाल ब्रिटेन में नहीं हो रहा है। ब्रिटेन के अख़बार टेलीग्राफ़ की रिपोर्ट के मुताबिक, बाज़ार में आने के कुछ महीनों बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन के ख़तरे को भांप लिया था। इसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि 40 साल से कम उम्र के लोगों को दूसरी किसी वैक्सीन का भी डोज़ दिया जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन से होने वाले नुकसान कोरोना के खतरे से ज्यादा थे। अब उन खतरों को एस्ट्राजेनेका ने हाईकोर्ट में कबूल कर लिया है।

ब्रिटेन में तो शायद पीड़ितों को न्याय मिल जाएगा। मगर भारत में क्या ऐसा हो पाएगा। क्या यहां पीड़ितों को कभी मुआवजा मिल पाएगा। क्योंकि सरकार ने पहले ही इस ज़िम्मेदारी से हाथ झटक लिए हैं और पीड़ितों के नाम पर बने पीएम केयर्स फंड की जानकारी देने से भी इंकार कर दिया है।

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